बूढ़ा केदार मंदिर

बूढ़ा केदार मंदिर कहाँ और कैसे जायें, पूजा-पाठ व प्रसाद

उत्तराखंड के कुमाऊ और टिहरी गढ़वाल दोनों जगह पर बूढ़ा केदार का मंदिर विराजमान है।

में आप भक्जनो को कुमाऊ के बूढ़ा केदार के बारे मै जानकारी देने जा रहा हूँ जो उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के भिक्यासैंण मासी के पास स्थित है।

प्राचीन काल में बद्रीनाथ व केदारनाथ जाने वाले रास्ते पर स्थित था बाद में ब्रिटिश सरकार के समय रोड का निर्माण हुआ तब भिक्यासैंण मासी रोड़ पर 8 किलोमीटर की दुरी पर है। रामनगर से 105 किलोमीटर की दुरी पर प्राचीन काल का भोले नाथ का मंदिर रामगंगा नदी के किनारे पर बसा है।

कैसे जायें ?

उत्तराखंड रोडवेज और निजी वाहनों से भोले नाथ के भक्त दूर- दूर से दर्शन के लिए आते है और भोले नाथ के दर्शन से भक्तो का जीवन सफल हो जाता है। आप यहाँ पर अपने निजि वाहन या बस के द्वारा जा सकते है।

बूढ़ा केदार का इतिहास व् कथा : 

बूढ़ा केदार मंदिर भोले नाथ का प्राचीन काल का बहुत पुराना मंदिर है। भारत में कोई ऐसा ही मंदिर होगा जिस में भोले नाथ का धड़ शिला रूप में साक्षात है। प्राचीन काल में केदार नाथ, बद्रीनाथ की यात्रा के लिए यही एक रास्ता था।

पहले के समय में जब भक्त लोग पैदल केदार नाथ या बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाते थे तो यही पर रुक कर भोले नाथ की आराधना, तपस्या करते थे जिससे भक्तों के शरीर मैं एक अदभुत शक्ति का संचार होता था।

बूढ़ा केदार मंदिर के पास की पर्वत की शृंखला केदार नाथ मंदिर के पर्वत से जुड़ी हुई है।

बूढ़ा केदार का मंदिर 15 वी 16 वी शताब्दी में चंद वंशी राजा ने की थी जो कशीपुर के राजा थे उनके पैतृक महल आज भी दिखाई देते है।

यहाँ भोलेनाथ एक शिला के रूप में साक्षात विराजमान है यहाँ नजदीक में “अफोह” नाम का एक गांव है। गांव वालो का कहना है की भोले नाथ का यहाँ पर साक्षात है।

मंदिर के नीचे पावन रामगंगा नदी बहती है।

पर्यटन स्थल :

बूढ़ा केदार पर्यटक के लिए उत्तराखंड का बहुत सुंदर तीर्थ स्थल है।

इस मंदिर का नाम वेदऔर स्कन्द पुराण में दिया गया है। यहाँ के आसपास के लोग अपने घर में जब जागर लगाते है तो अपने देवताओं को स्नान कराने के लिए यहाँ लाते है और यहाँ पर माँ भगवती की जातरा भी ढोल नगाड़े के साथ यहाँ आती है और देवताओं का शाही स्नान होता है।

यहाँ पर आस पास के लोग अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ आकर पितरों को स्नान कराने के लिए दूर-दूर से आते है और अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करते है पर लोग अपने बच्चो का जनेऊ और संस्कार भी करते है। यहाँ पर मंदिर मै पंडित जी विधि विधान से पूजा पाठ करते है और भक्तों को भोले नाथ की कथा सुनाते है।

बूढ़ा केदार मंदिर का प्रसाद व पूजा पाठ :

यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ शाही स्नान किया जाता है जिसमे दूर – दूर से भक्त आते है और दो दिन का मेले का आयोजन होता है। पूर्णिमा रात को स्नान के बाद लोग हाथ में दिए जलाते है और भोले नाथ का जय जैकार लगाते है और ॐ नम: शिवाय का जाप करते है।

रामगंगा नदी में स्नान करते है। चन्दन, दूध,बेल पत्री, तिल, भांग, बताशा सच्चे मन से भोले नाथ को अर्पण करते है और अपनी मनोकामना मांगते है। भोले नाथ मन के भोले है अपने भक्तों को मनोवांछित वरदान देते है।

शिवरात्रि का दिन और सावन का महीना भोले नाथ का महीना होता है। भक्त लोग शिव का जैकारा लगाते हुए शिव की आराधना और तपस्या के लिए परिवार सहित आते है और भोले नाथ को रामगंगा के जल, चन्दन, दूध, बेल पत्री, तिल, भांग से अभिषेक करते है और प्रसाद चढ़ाते है  और भोले नाथ की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते है।

निष्कर्ष :

उत्तराखंड देव भूमि है यहाँ पर कई तीर्थ स्थान है बहुत से साधु महात्माओ ने उत्तराखंड की भूमि पर तपस्या की थी उन्ही के तपो बल से हमारी भूमि को देवभूमि के नाम से जाना जाता है।

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अंतिम शब्द :

आशा करता हूँ की आपको बूढ़ा केदार मंदिर की जानकारी सही लगी होगी।

यदि सही लगे तो अपने दोस्तों को भेजें। कमेंट बॉक्स में जय भोले अवश्य लिखें।

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